जीवन परिचय • मीराबाई का जन्म राजस्थान राज्य में मेड़ता के पास स्थित चौकड़ी नामक ग्राम में सन 1498 ई में हुआ था इनके पिता का नाम रतन सिंह राठौड़ था मीराबाई की माता का नाम वीरकुमारी था। मीराबाई अपने माता-पिता की इकलौती पुत्री थी।
जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी की प्रपौत्री जोधपुर नरेश राजा रतन सिंह की पुत्री मीराबाई थी। मीराबाई जब छोटी थी तभी इनकी माता की मृत्यु हो गई इस कारण इनके दादाजी ने पालन पोषण की जिम्मेदारी को निभाया और मीराबाई की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही संपन्न हुई मीराबाई बचपन से ही श्री कृष्ण जी की भक्त रही हैं।
मीराबाई का विवाह चित्तौड़ के महाराजा राणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज के साथ किया गया भोजराज उदयपुर के महाराजा थे मीराबाई विवाह के कुछ वर्षों के बाद ही विधवा हो गई थी मीराबाई ने मथुरा वृंदावन में रहकर कृष्ण की भक्ति की और यह अपने जीवन की अंतिम समय में द्वारका में स्थित रणछोड़ जी के मंदिर में गाते - गाते सन 1546 ई में अपने प्राणों को त्याग दिया ।
मीराबाई की रचनाएं •
(1)• नरसी जी का मायरा
(2)• राग गोविंद
(3)• राग सोरठ के पद
(4)• गीत गोविंद का टीका
(5)• मीराबाई की मल्हार
(6)• राग बिहाग
मीराबाई के गुरु का नाम • मीराबाई के गुरु का नाम
'रैदास' था इनका वास्तविक नाम रविदास है रविदास एक महान , संत , कवि , दार्शनिक , समाज सुधारक आदि थे मीराबाई रविदास जी को अपना गुरु मानते हुए कहती है कि :-
"गुरु मिलिया रैदास दिन्ही ज्ञान की गुटकी।"
मीराबाई का साहित्यिक परिचय • मीराबाई ने हिंदी साहित्य में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया है इनकी रचना में कृष्ण भक्ति का मुख्य रूप से प्रभाव देखने को मिलता है इनके काव्य में इनके हृदय की सरलता एवं इनकी भक्ति को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है उनकी भक्ति माधुर्य भाव की रही है इन्होंने अपना पूरा जीवन कृष्ण की भक्ति में समर्पित किया है इन्होंने कृष्ण को पति के रूप में स्वीकार किया है कृष्ण की भक्ति और उनके स्वरूप की आराधना पूरे जीवन की है।
मीराबाई की भाषा • मीराबाई ने अपनी रचनाओं में राजस्थानी मिश्रित भाषा का प्रयोग किया है साथ ही इन्होंने ब्रजभाषा का प्रयोग भी किया है इनकी भाषा सरल एवं सहज है मीराबाई की रचनाएं शुद्ध साहित्यिक ब्रजभाषा के बेहद निकट है उनकी रचनाओं से गुजराती, राजस्थानी, ब्रज भाषा , पश्चिमी हिंदी का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है इनकी काव्य भाषा अत्यंत मधुर एवं सरल है।
मीराबाई की शैली • मीराबाई ने ब्रजभाषा का प्रयोग तो किया ही है साथ ही अपनी रचनाओं में जनभाषा को भी शामिल किया है मीराबाई की पदावली बहुत ही प्रसिद्ध है इन्होंने कृष्ण की परंपरागत शैली को अपनाया है मीराबाई ने अपने पदों में मुक्तक तथा गेय पद शैली को अपनाया है उन्होंने अपनी रचना में अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया है।
साहित्य में स्थान • मीराबाई का हिंदी में सर्वश्रेष्ठ स्थान है। इन्होंने अपने जीवन के बिरह वेदना को अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है और कृष्ण को अपने पति के रूप में स्वीकार करते हुए पूरे जीवन इनकी भक्ति की है मीराबाई की भक्ति माधुर्य भाव की है। मीरा के स्फूट पद ' मीराबाई की पदावली ' के नाम से प्रकाशित हुई है। अतः हिंदी साहित्य में मीराबाई का स्थान सर्वश्रेष्ठ रहा है और कृष्ण भक्त कवियों में इनका प्रथम स्थान माना जाता है।
Tags
जीवन परिचय