जीवन परिचय • महाराणा प्रताप सिंह उदयपुर मेवाड़ में सिसोदिया राजपूत वंश के राजा थे वो इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिए अमर है उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ में संघर्ष किया महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कई बार युद्ध में भी हराया।
महाराणा प्रताप का जन्म• महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था इनके पिता का नाम महाराणा उदय सिंह और माता का नाम राणी जयवंत कंवर था। महाराणा प्रताप की माता जयवंता बाई जो पाली के सोनगरा अखै राज की बेटी थी। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था उनका पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया था राणा उदय सिंह की दूसरी रानी धीरबाई जिसे राज्य के इतिहास में रानी के भटियाणी के नाम से जाना जाता है। वे अपने पुत्र कुंवर जगमाल को मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी प्रताप के उत्तराधिकारी होने पर उसके विरोध स्वरूप जगमाल अकबर के खेमे में चला जाता है महाराणा प्रताप के पास एक सबसे प्रिय घोड़ा था जिसका नाम चेतक था।
महाराणा प्रताप का पहला राज्य अभिषेक 28 फरवरी 1572 में गोगुंदा में हुआ था लेकिन विधि विधान स्वरूप राणा प्रताप का द्वितीय राज्याभिषेक 1572 ई में ही कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ दूसरे राज्य अभिषेक में जोधपुर का राठौड़ शासक राव चंद्रसेन भी उपस्थित थे। राणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 शादियां की थी उनकी पत्नियों और उनसे प्राप्त उनके पुत्रों पुत्रियों के नाम इस प्रकार हैं :-
•महारानी अजब्दे पवार :- अमरसिंह और भगवान दास,
• अमरबाई राठौर :- नत्था,
• सहमति बाई हाडा :- पूरा,
• आलमदेबाई चौहान :- जसवंत सिंह,
• रत्नावली बाई परमार :- माल,गज, क्लिंगु,
• लखाबाई :- रायभाना,
• जसोबाई चौहान :- कल्याणदा
• चंपाबाई जंथी :- कल्ला, सनवालदास और दुर्जन सिंह
• सोलनखीनीपुर बाई :- साशा और गोपाल
• फूलबाई राठौर :- चंदा और शिखा
• खीचरआशाबाई :- हत्थी और राम सिंह
महाराणा प्रताप के शासनकाल में सबसे रोचक तथ्य यह था कि मुगल सम्राट अकबर बिना युद्ध के प्रताप को अपने अधीन लाना चाहता था इसलिए अकबर ने प्रताप को समझाने के लिए चार राजदूत को नियुक्त किया। जिसमें सबसे पहले सितंबर 1572 ई में जलाल खान प्रताप के खेमे में गया इसी तरह से मानसिंह 1573 ई में भगवान दास सितंबर 1573 ई में तथा राजा टोडरमल दिसंबर 1573 ई प्रताप को समझाने के लिए पहुंचे लेकिन राणा प्रताप ने चारों को निराश किया इस तरह राणा प्रताप ने मुगलों की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया। और उसके बाद हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध हुआ।
हल्दीघाटी का युद्ध :- यह युद्ध 18 जून, 1576 ई में मेवाड़ तथा मुगलों के बीच हुआ था इस युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले हकीम खान सूरी एकमात्र मुस्लिम सरदार थे। इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खान ने किया। इस युद्ध का आंखों देखा वर्णन अब्दुल कादिर बदायूनी ने किया युद्ध को आसफ खान ने अप्रत्यक्ष रूप से जेहाद की संज्ञा दी। इस युद्ध में बीदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान करके महाराणा प्रताप के जीवन की रक्षा की। वही ग्वालियर नरेश 'राजा रामसाह तोमर' भी अपने तीन पुत्रों 'कुंवर भवानी सिंह', 'कुंवर शालीवाहन', 'कुंवर प्रताप सिंह' पौत्र बलभद्र सिंह एवं सैकड़ो वीर तोमर राजपूत योद्धाओं समेत चीरनिद्रा में सो गए।
इतिहासकार का मानना है कि इस युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ पर देखा जाए तो इस युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह विजय हुए। अकबर की विशाल सेना के सामने मुट्ठी भर राजपूत कितनी देर तक टिक पाते, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, ये युद्ध पूरे 1 दिन चला और राजपूतों ने मुगलों के छक्के छुड़ा दिए और सबसे बड़ी बात यह है कि युद्ध आमने-सामने लड़ा गया था महाराणा प्रताप की सेना ने मुगलों की सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था और मुगल सेना भागने को मजबूर हो गई।
दिवेर का युद्ध :- राजस्थान के इतिहास 1582 में दिवेर का युद्ध सबसे महत्वपूर्ण युद्ध माना जाता है क्योंकि इस युद्ध में राणा प्रताप के खोए हुए राज्यों की दोबारा प्राप्ति हुई, इसके बाद राणा प्रताप व मुगलों के बीच एक लंबा संघर्ष युद्ध के रूप में घटित हुआ जिसके कारण कर्नल जेम्स टॉड ने इस युद्ध को "मेवाड़ का मैराथन" कहा।
महाराणा प्रताप की सफलता :- 1579 से 1585 तक पूर्व उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार और गुजरात के मुगल अधिकृत प्रदेशों में विद्रोह होने लगे थे। और महाराणा प्रताप भी एक के बाद एक गढ़ जीतते जा रहे थे। इसका परिणाम यह रहा कि अकबर उस विद्रोह को दबाने में उलझा रहा और मेवाड़ पर से मुगलों का दबाव कम हो गया इस बात का लाभ उठाकर महाराणा प्रताप ने 1585 ई में मेवाड मुक्त प्रयत्नों को और भी तेज कर दिया महाराणा प्रताप की सेना ने मुगल चौकियों पर आक्रमण शुरू कर दिए और तुरंत ही उदयपुर सहित 36 महत्वपूर्ण स्थान पर फिर से महाराणा प्रताप का अधिकार स्थापित हो गया महाराणा प्रताप ने जिस समय सिंहासन ग्रहण किया, उस समय जितने मेवाड़ की भूमि पर उनका अधिकार था, पूरी तरह से उतने ही भूमि भाग पर अब उनकी सत्ता फिर से स्थापित हो गई थी।
12 साल के संघर्ष के बाद भी अकबर उसमें कोई परिवर्तन न कर सका और इस तरह महाराणा प्रताप समय की लंबी अवधि के संघर्ष के बाद मेवाड़ को मुक्त करने में सफल रहे और ये समय मेवाड़ के लिए एक स्वर्ग युग साबित हुआ मेवाड़ पर लगा हुआ अकबर ग्रहण का अंत 1585 ई में हुआ उसके बाद महाराणा प्रताप उनके राज्य की सुख-सुविधा में जुट गए।
महाराणा प्रताप की मृत्यु :- राज्य की सुख - सुविधा के लिए काम करने के 11 वर्ष के बाद ही दुर्भाग्यवश 19 जनवरी 1597 ई में अपनी नई राजधानी चावंड में उनकी मृत्यु हो गई।
'एक सच्चे राजपूत, शूरवीर, देशभक्ति,योद्धा, मातृभूमि के रखवाले के रूप में महाराणा प्रताप दुनिया में सदैव के लिए अमर हो गए।
फिल्म और साहित्य में :-
• सबसे पहले 1946 में जयंत देसाई के निर्देशन में महाराणा प्रताप नाम से श्वेत-श्याम फिल्म बनी थी
• 2013 में सोनी टीवी ने 'भारत का वीर पुत्र - महाराणा प्रताप नाम से धारावाहिक प्रसारित किया था जिसमें बाल कुवर प्रताप का पात्र फैशल खान और महाराणा प्रताप का पात्र शरद मल्होत्रा ने निभाया था।
Tags
जीवन परिचय