रविवार की छुट्टी क्यों होती है ? कब से हो रही है?

 नमस्कार दोस्तों द स्टडी जोन में आपका स्वागत है। आज हम छुट्टियों का सम्पूर्ण इतिहास पढ़ेंगे। और कब से छुट्टी हो रहा है। कौन महापुरुष थे जिन्होंने सप्ताह में एक दिन की छुट्टी कराई। उससे पहले भारत में क्या हो रहा था। क्या मजदूर सातों दिन काम करते थे। यही सब सवाल का उत्तर जानेंगे।



रविवार की छुट्टी पर निबंध • 
                                           आज का भौतिकवादी मानव अधिक से अधिक धन और ऐश्वर्य पाने के चक्कर में मशीन या कोल्हू के बैल की तरह काम कर रहा है। दिन-रात एक ही काम में लगे रहने से मानव की दक्षता घटती है। मानव जीवन में एक रास्ता के कारण निरसता आ जाती है। इससे मानव जीवन कुंठित हो जाने का भय बना रहता है। इसका एक ही इलाज है। बीच-बीच में विश्राम लेना यह तभी संभव है। जब सरकारी कार्यालय, व्यापारिक, प्रतिष्ठान तथा शैक्षणिक संस्थाएं अनिवार्य रूप से बीच-बीच में बंद रहे। इसी बंदी को अवकाश या छुट्टी कहते हैं। यह छुट्टी अत्यंत उपयोगी होती है।
छुट्टी या अवकाश अनेक प्रकार के होते हैं। विद्यार्थियों की प्रतिदिन की पढ़ाई में प्रथम पाली और द्वितीय पाली के बीच में अक्सर कुछ समय का अवकाश रहता है। इस मध्य अवकाश में छात्र पुनः तरो ताजा होकर द्वितीय पाली की पढ़ाई शुरू करते हैं। इसके अलावा होली, दशहरा ,दीपावली, गर्मी, शीत आदि में छुट्टियां दी जाती हैं। इन छुट्टियों में मानव की एक रास्ता समाप्त हो जाती है। इसी उद्देश्य से सभी सरकारी कार्यालय, शैक्षणिक संस्थाओ आदि में सप्ताह में एक दिन रविवार को छुट्टी दी जाती है जिसे रविवारीय छुट्टी कहा जाता है। विद्यार्थियों के लिए रविवार की छुट्टी का विशेष महत्व है।

एक आदर्श विद्यार्थी का गुण •   
                                         एक आदर्श विद्यार्थी रविवार की छुट्टी में अपने वस्त्र और कमरे आदि की विशेष सफाई करता है। वह पुस्तकों को सलीके से सजाकर रखता है। सप्ताह भर के दौरान अधूरी पढ़ाई को पूरा करता है।
 कुछ विद्यार्थी इस दिन अति आनंद एवं उमंग का अनुभव करते हैं। वे दिन भर खेल-कूदकर तथा टी वी पर कार्टून या फिल्में देखकर समय व्यतीत कर देते हैं। इस दिन उन्हें मास्टर साहब की छड़ी का भय नहीं रहता। वह सब पिंजरे से मुक्त पक्षी की तरह विचरण करते हैं। ऐसे लोगों के लिए रविवार की छुट्टी ढेरों खुशियां लेकर आती है। जिसकी प्रतीक्षा वे सप्ताह भर करते हैं।  
इसी प्रकार अन्य लोग भी रविवार की छुट्टी अपने-अपने ढंग से व्यतीत करते हैं। कुछ लोग इस दिन अपने आधे-अधूरे कार्यों को पूरा करते हैं। तो कुछ लोग दिन भर मंदिर-मस्जिद में जाकर आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। कुछ लोग इस दिन परिवार एवं मित्रों के साथ किसी रमणिक स्थल पर पिकनिक मनाकर व्यतीत करते हैं। तो कुछ लोग सीनेमा का आनंद उठाकर। इस प्रकार रविवार की छुट्टी से छात्र,अध्यापक,कर्मचारी एवं पदाधिकारी सभी लाभ उठाकर तरो-ताजा हो। पुनः सोमवार से अपने-अपने कार्यों में जुट जाते हैं। अतः मानव जीवन में रविवार की छुट्टी का विशेष महत्व है।


भारत में कैसे चुना रविवार का दिन : 
   
                                               कहां जाता है कि पहले भारत में अंग्रेजों के वक्त भारतीय 7 दिन काम करते थे। और उन्हें एक दिन आराम की आवश्यकता थी। इसके बाद 1857 में मजदूरों के नेता मेघा जी लोखंडे ने छुट्टी को लेकर आवाज उठाई और उन्होंने अंग्रेजों से छुट्टी के लिए संघर्ष किया और उनका कहना था। कि मजदूरों को एक दिन आराम और देश या समाज के लिए काम करने का दिन मिलना चाहिए। 
रविवार को अंग्रेज लोग छुट्टी पर रहते थे। या चर्च जाते थे। ऐसे में भारत में रविवार का दिन हीं छुट्टी के लिए लोकप्रिय हो गया। बता दें कि वैसे रविवार को साप्ताहिक अवकाश के रूप में मान्यता भारत सरकार द्वारा नहीं दी गई है। बल्कि यह अंग्रेजो के समय से ही चलता आ रहा है। एक आरटीआई में सरकार ने रविवार को सार्वजनिक छुट्टी होने से मना कर दिया था।


(1)• घर में अगरबत्ती जलाने के क्या फायदे हैं ?

आपको बता दें कि भारत में अगरबत्ती का प्रचलन प्राचीन काल से ही जारी है। प्रारंभ में अगरबत्ती की जगह धूप का प्रचलन था। तो आइये इस सवाल के जवाब में जानते हैं घर में अगरबत्ती जलाने के पांच फायदे के बारे में।
[1]  अगरबत्ती जलाने के दो प्रयोजन हैं। पहला यह यह कि देवताओं की समक्ष अगरबत्ती जलाकर उन्हें प्रसन्न करना। और दूसरा यह की घर में सुगंध को फैलाना जिससे मन शांति महसूस करें।
[2] दूसरा कहते हैं की अगरबत्ती जलाने से घर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर हो जाती है। विशेष प्रकार की सुगंध से मस्तिष्क का दर्द और उससे संबंधित रोगों का नाश हो जाता है। इस दिल के दर्द में भी लाभदायक माना गया है।  
[3]  तीसरा कहते हैं कि इससे घर की लड़ाई-झगड़ा और पितृदोष का भी शमन हो जाता है। और घर में शांति एवं समृद्धि बनी रहती है।
[4]  चौथा कहते हैं कि यदि आपको किसी भी प्रकार का तनाव है या चिंता है। तो घर में विशेष प्रकार की सुगंध वाली अगरबत्ती जलाएं। इससे रात में अच्छी नींद भी आती है।    
[5]  पांचवा कहते हैं कि अगरबत्ती लगाने से दिव्य शक्तियां आकर्षित होती हैं। और व्यक्ति को उनसे मदद मिलती है।     


(2)• स्कूल बस का रंग पीला क्यों होता है ?

दरअसल स्कूल बस तो आपने देखी ही होगी वही जो पीले रंग की होती है। लेकिन क्या कभी आपने ये ध्यान दिया है कि स्कूल की बसें आखिर पीले रंग की ही क्यों होती है ? लाल हरे या नीले रंग की क्यों नहीं होती है ? अगर आप ये बात नहीं जानते हैं। तो चलिए इस सवाल के जवाब में जानते हैं आखिर स्कूल की बसों का रंग पीला ही क्यों होता है। आपको बता दें स्कूल बस को पीले रंग का इसलिए पेंट किया गया। क्योंकि पीला रंग हमें जल्दी आकर्षित करता है। पीला रंग एक ऐसा रंग है। जिसे हम आसानी से बहुत दूर से देख सकते हैं। बारिश कोहरा और ओस में भी हम इस रंग को आसानी से देख पाते हैं। इतना ही नहीं यदि हम बहुत सारे रंगों को एक साथ देखें तो पीला रंग सबसे पहले हमारे ज्ञान को आकर्षित करता है।
इसका मतलब है कि बाकी रंगों की तुलना में पीला रंग ज्यादा आकर्षित होता है। और अन्य किसी भी रंग की तुलना में यह आंखों को जल्दी दिखाई देता है। भले ही आप सीधा ना देख रहे हों। तभी आप आसानी से पीले रंग को देख पाते हैं। इसलिए स्कूल बस को पीले रंग से पेंट किया जाता है। ताकि हाईवे पर एक्सीडेंट की संभावना न के बराबर हो। ताकि बच्चे सेफ्टी से अपने घर पहुंच सके।
तो दोस्तों उम्मीद करता हूं। अब आप समझ गए होंगे की स्कूल को बसों का रंग पीला क्यों होता है।
 

(3)•मुसलमान कुत्ते क्यों नहीं पालते हैं ?

दोस्तों यह बहुत अच्छा सवाल है। इसका जवाब देना बहुत जरूरी भी है। लेकिन उससे पहले मैं आपको बताना चाहूंगा कि आप दूसरों की बताई हुई गलत बातों और गलत स्रोतों को ना माने और अपना ज्ञान साफ रखें और तर्कों को सामने रखकर सही बात समझें और फैलाएं ।
आईये इस सवाल के जवाब में यह भी जान लेते हैं। कि मुसलमान कुत्ते क्यों नहीं पालते हैं। इसका सीधा सा सवाल है कि मुसलमान कुत्ते पलते हैं या पाल सकते।
 उदाहरण के तौर पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के पास दो पालतू कुत्ते हैं। और भारत की बात करें तो वैसे ही भारत में लाखों की तादाद में मुसलमान गरीबी रेखा से भी नीचे अपनी जिंदगी गुजरता है। जो दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से कमा पता है। वह कुत्ता पालने से ज्यादा अपने घर को पालने की सोचता है। और वैसे भी कुत्ता पालने में तो पैसे लगते हैं। इसलिए आप इन सब फिजूल मसलों को छोड़िए और गरीबी दूर करने के मसलों पर जोर दीजिए। तो दोस्तों आपका बहुत-बहुत धन्यवाद अभी तक बने रहने के लिए।


     

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